विश्वास, ईर्ष्या, जीवन का सारांश तीन आइसी कहानियाँ जो आपकी सोच बदल देगी Story in Hindi
Story in Hindi: विश्वास
Story in Hindi: एक गाँव में दो गहरे मित्र रहते थे, वे जब बड़े हुए तो उन्होंने एक साथ
फौज में जाने का निर्णय लिया। कुछ समय बाद जब युद्ध शुरू हुआ तो उन्हें
एक ही चौकी पर नियुक्त किया गया।
एक रात जब भीषण बमबारी हो रही थी तो उनमें से एक मित्र बुरी
तरह घायल हो गया और उसने सहायता के लिये अपने मित्र को पुकारा।
मित्र ने अपने घायल मित्र की सहायता हेतु जाने के लिए अपने कमाण्डर से
आज्ञा माँगी तो कमाण्डर ने यह कहते हुए मना कर दिया कि में अपने एक
सैनिक को लगभग खो चुका हूँ और दूसरे को खोना नहीं चाहता। अखिरकार
कमाण्डर को मित्र की ज़िद के आगे झुकना पड़ा।
कुछ समय बाद जब वह वापस लौटा तो उसके कंधों पर मित्र का शव
था। कमाण्डर ने कहा कि मैंने तुम्हें पहले ही कहा था कि वहाँ जाने का कोई
अर्थ नहीं, तुम उसे नहीं बचा पाओगे । Story in Hindi
इस पर मित्र का जवाब था, “सर! ऐसा नहीं है, जब मैं इसके पास
पहुँचा तो यह जीवित था। मैंने इसके सिर को अपनी गोद में लिया तो इसके
आखिरी शब्द थे कि मुझे विश्वास था मित्र, तुम जरूर आओगे ।”
ईर्ष्या
एक अस्पताल में दो मरीज भर्ती थे । दोनों गंभीर बीमारी से पीड़ित थे, अतः उन्हें पलंग से
उठने की मनाही थी। उनमेंसे एक मरीज का पलंग खिड़की से सटा हुआ था। वह प्रायः अपने
मरीज-मित्र को खिड़की से बाहर होने वाली गतिविधियों की जानकारी दिया करता था । घने पेड़,
फूलों का खिलना, बच्चों की शरारतें, बड़ों की चहलकदमी आदि घटनाओं का वह जीवंत वर्णन
अपने मित्र को सुनाता था। दूसरे मित्र को इस बात से बहुत ईर्ष्या होती थी कि वह यह सब स्वयं
नहीं देख सकता।
एक रात खिड़की के पास वाले मरीज को दिल का दौरा पड़ा और वह तड़पने लगा। यह
सब देखकर भी दूसरा मरीज निश्चिंत लेटा रहा और उसने अपने मित्र की मदद के लिए किसी
को नहीं पुकारा। सही समय पर इलाज न हो पाने के कारण उस मरीज की मृत्यु हो गई अगले
दिन जब लोग उसके मृत शरीर को वहाँ से हटाने के लिये आए तो दूसरे मरीज ने उन लोगों से
अपने पलंग को खिड़की के पास लगाने का आग्रह किया। उसके आग्रह पर उन लोगों ने पलंग
को खिड़की से सटा दिया।
मरीज अपनी इस सफलता पर अत्यधिक प्रसन्न था परन्तु अगले ही पल उसकी सारी
खुशी काफूर हो गयी। जब उसने खिड़की से बाहर देखने का प्रयास किया तो उसे कुछ नहीं दिखा
क्योंकि खिड़की के उस पार सिर्फ एक ही चीज़ थी, एक खामोश, बदसूरत सी दीवार।
Story in Hindi: जीवन का सारांश
एक बार सैनिक ने वियतनाम युद्ध से लौटने के बाद अपने
घर फोन किया और कहा कि पिताजी,
मैं युद्ध की त्रासदी से परेशान हो गया
हूँ और मैं अब हमेशा के लिये वापस
लौटना चाहता हूँ, लेकिन एक समस्या
है कि मेरा एक गहरा मित्र है, जो
अनाथ है और वियतनाम युद्ध में उसने
अपना एक हाथ और एक पैर खो दिया
है। मैं उसे भी अपने साथ लाना चाहता हूँ और इसके लिये आपकी इजाजत चाहता हूँ।
इस पर उसके पिता ने जवाब
दिया, “बैटा, तुम्हें पता है तुम क्या कह
रहे हो। वह एक अपाहिज है और वह
हमारे ऊपर एक बोझ ही होगा। हमारी
भी अपनी एक जिंदगी है तुम उसे
उसके हाल पर छोड़ दो और अपने साथ
यहाँ लाने का ख्याल दिल से निकाल दो।”
यह सुनकर सैनिक ने फोन रख दिया।
कुछ दिन बाद खबर आई कि
उस सैनिक की मृत्यु हो गयी है और
पुलिस को शंका है कि सैनिक ने
आत्महत्या की है।
दुःख से भरे माता-पिता जब
अपने पुत्र का शव लेने पहुँचे तो वे यह
देखकर अवाक् रह गए कि उनके पुत्र
के एक हाथ व एक पैर नहीं था।
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